धर्म प्रधान से स्वांग महान तक, आज के पर्व त्योहार और हम

डा० जी० भक्त

संकटापन्न जब आज विश्व है, और मनाते हम त्योहार ।
युद्ध की ज्वाला धधक रही, फिर यह तो है संक्रान्तिकाल ।।
जहाँ ज्ञान शान्ति का दायक और विकास का है उन्नायक ।
वेद वेदांग और कथा पुराण जो मानवता के थे परिचायक ।।

विजय दिलाती हमें याद यह युद्ध नही, शान्ति की शिक्षा ।
जब-जब काली घटा बन छायी, मानवता की हुयी परीक्षा ।।
प्रेम भक्ति सद्भाव ज्ञान का पोषक बनी संकल्प की दीक्षा ।
चमक उठे कृपाण ढाल जब मिलती कहाँ स्नेह की भिक्षा ।।

जहाँ रजोगुण का पोषक तम, मरते दम तक शस्त्र चलाया।
यज्ञ जाप पूजन तर्पण क्या उत्सव पर्व सन्मार्ग दिखाया ??
आडम्बर का राज्य न न्याय, सत्य अहिंसा को ठुकराना ।
इमानदार कहलाना किन्तु भाई-भाई का सिर कटवाना ।।

कोई बने मजहवी सनातन कोई सदाचारी न पुजारी।
कत्लयाम बम बाजी चलती शिशु बहन या हो महतारी ।।
ऐसे भो भारत के वासी, आस्था भक्ति जनकल्याणी ।
श्रावन आश्विन कार्तिक भर जो बन ते सात्त्वित शाकाहारी ।।

श्रद्धा और विश्वास इमान का रंग वस्त्र और चन्दनधारी ।
शोषण लूट डकैती करते भूल गये सत पथ को ज्ञानी ।।
शील हरण, अपहरण, न्यायपथ त्याग व्यसन अपनाना सीखा।
मिथ्या है वह धर्माचार जो मानव बनकर देता धोखा ।।

धनतेरस और काली पूजन, लक्ष्मी पूजा और दिवाली।
चित्रगुप्त, गोवर्द्धन पूजा, भ्रातृदूज घनकूट मनाली ।।
देवोत्थान, महान एकादशी, कार्तिक स्नान मना कर तारे।
इतने सारे देव हमारे हम सब उनके पूजन हारे।।

कैसे हम कर्तव्य विहीन और दुखी दीन धन बल से हीन
भैया ! मानव धर्म है उत्तम सत्य वचन सेवा में लीन ।।
युद्ध नही, तुम बुद्ध बनो, मन शुद्ध और प्रबुद्ध बनो।
सब पर दया दिखाओ उनके नया उमंग जगाओ ।।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *