सेवा का श्रेय, नेतृत्व का ध्येय, कदापि नदी प्रेय

डा० जी० भक्त

हे राम ! तेरी जय हो, संसार सदा निर्भय हो।
रावण के वंशज को तूने ही नाश किये हो।।
उससे क्या कम पाप भूमि पर आज नही होता है ?
क्या मातु पिता अरु वृद्ध जनों का हृदय नही रोता हैं ??
नारी का शील-हरण अपहरण प्रताड़न अनावरण भी होता है।
आत्म दाह, विष पान फांसो निष्कासन को संवरण जो होता है।।
जिन सेवाओं की मर्यादा बनी विकास का श्रेय राष्ट्र में।
घूस लूट ओर परिग्रह दुराग्रह का प्रमाण मिले जनतंत्र में।।
राहत पर हो पैनी नजर, महंगाई पर सदा नियंत्रण,
योजनाओं पर हो निगरानी इस पर कभी न आना कानी।।
ऐसे विकास की कल्पना तो बर्बादी का सपना माने।
नेतृत्व में कभी पायें तो बनवास पर भी सोचा जाये।।
राष्ट्रवादिता भोग वाद नहीं, राष्ट्र भक्ति का लक्ष्य हो लागू।
होना चाहिए सोच कर बापू के कर्मों का जादू ।।
बलिदानी का त्याग देश का भाग्य बना जनतंत्र हमारा।
फिर क्यों बसते है गलियों में सोते नंगे सड़क किनारा ।।
विकास का प्रमाण अन्तरिक्ष यान को देखा हमने।
कोरोना के ग्रास का त्रास विश्व में पाया सबने ।।
बना वैक्सिन, नहीं दवाई, कई प्रकार के वैरियेण्ट लाये।
स्वास्थ्य आरोग्य प्रदूषण निरीक्षण का भक्षण भाये।।
ऐसे संयोग और प्रयोग के उद्योग नहीं।
तो आयुध संग्रहण और प्रबन्धन पर सोच जगी।।
मेरे देश वासियों, आखिर ईश्वर हैं क्यों? मंदिरों को खोदो देखो।
कहीं उन्हें भी प्रदूषित पाकर हम धोखा न खायें।।

ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आँख में…!
जो शहीद……..याद करो कुर्वाणी।।
सामने 2024 हैं।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *