सृष्टि के विविध विधान देख मत हो हैरान

डा० जी० भक्त

सृष्टि में प्रकृति के विविध विधान हैं।
विविध आयाम, प्रमाण और पहचान है।।
हर युग में राम रावण कृष्ण और कंस हुए।
धरती पर धर्म और पापों के पुंज जुटे ।।
विष और अमृत सर्वदा एक संग रहे।
एक साथ दुश्मन और दोस्त भी जीवन्त बने ।।
संग्रह और विग्रह का खेल व्यावहारिक है।
युद्ध और शान्ति पर विचार करना भार्मिक है।।
समरस, सहृदय, सहयोग मैतृ साश्वत है।
ईश्वर और जीव पर विवेचन कितना सार्थक है।।
मानव का मानव में ऐक्य भाव निहित है।
फिर भी जीवन की शैली विखडित है।।
कारण के साथ परिणाम में पृथकता है।
गुण कर्म काल और स्वभाव की प्राथमिकता है।।
काल ही जीवन तो कर्म प्राण पोषक है।
धरती से आकाश तक विस्तार इसका धोतक है।।
सकारात्मक सरोकार हो तो प्रेम मय संसार है।
शान्ति समृद्धि और प्रगति ही आधार है।।
दुनियाँ का ईश्वर में विश्वास एक धारणा है।
प्रवृत्तियों के प्रपंच बोच आत्म विश्वास एक सपना हैं।।
यहाँ तुझमें धन और गौरव की महानता है।
लोभ और स्वार्थ का बाजार तुझे मोहता है।।
संघर्षों का जाल जब अरमानों को तोड़ता है।
तो भोग का भिखारी रोगों का व्यापारी बनता है।।
राजा हो या किंकर किसान या बनवारी।
जिसने जीवन में मिहनत से हिम्मत न हारी ।।
चला बनकर राही, सबके जीवन का साथी।
वहीं अविचल सत्यार्थी, कृष्णा कन्हैया सै सारथी ।।

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