गुण – दोष
1
आज्ञा पालन हमें दिलाता स्नेह बड़ों से ।
सेवा और नम्रता गुण है श्रेष्ठ सबों से ।।
सत्कर्म सदा फुलता – फलता यश पुण्य प्रदाता ।
त्याग , समर्पण मानव को उत्कर्ष दिलाता ।।
2
जो जीते जग हेतु , सुजीवन वे जीते हैं ।
सुख से बढ़ संतोष का शीतल जल पीते हैं ।।
नही भोग का भाव , योग अपनाते गाते ।
और परस्पर प्रेम की गंगा ही छलकाते ।।
3
क्षण – क्षण , कण – कण में उनका विश्वास उपजता ।
गीत उसी का रोम – रोम में सदा पनपता ।
उसका ही गायन इस जीवन की संस्कृति है ।
मोह और सुख भोग जीव की अधोगति है ।।
4
ज्ञान सलिल स्नान – पान – तर्पण – मार्जन से ।
जहाँ शुचिता लक्षित वही शुद्ध दर्पण है ।।
उसमें दीखता विम्ब जगत का स्वच्छ निखरता ।
ज्ञान – गिरा के अधोपतन से देश बिगड़ता ।।