बड़ी अजीब सी है ये जिंदगी

    अपनी छोटी – सी खुशी के लिए कई लोगो की खुशी की कली को मुरझा  देते है। ओ कली, कितनो का खुशीयो का कली होता है। आप, जिस प्रकार नींबू के रस की एक बूंद हज़ारों लीटर दूध को बर्बाद कर देती है . . . उसी प्रकार . . मनुष्य का अहंकार भी अच्छे से अच्छे संबंधों को बर्बाद कर देता है । कोई आप के खुशी के लिए रास्ते से उतर कर आप के साथ चलता है इस का ये नहीं की ओ इंसान नहीं है!
   वह आंसू जो रात के अंधेरे में चुपचाप निकलते है, अंदर तक तोड़ देते हैं । रोता वही है जिसने महसूस किया हो सच्चे रिश्ते को . . . वरना मतलब के रिश्तें रखने वाले को तो कोई भी नही रूला सकता . . बदला तो दुश्मन लेते है , हम तो माफ़ करके दिल से निकाल देते ! अंदाज़े से न नापो, किसी इंसान की हस्ती को . .  ठहरे हुए दरिया अक्सर ,गहरे हुआ करते हैं . ! लोग तो हमारे के दिखावा से जानते हैं कि हम  कितने काबिल है । पत्थर भी टूट जाता है, आजमाने से . .  मैं तो इंसान हूँ . .।
मेरी आँखों में आँसू नहीं हैं , बस कुछ “ नमी-सी ” है . . वजह Tu नहीं ,  Teri ये “ कमी-सी” है । ये कोई खेल नहीं . . . जो आज हंस के खेला और कल रो के भुला दे . . . .।
“बड़ी अजीब सी है ये जिंदगी ,
जो चाहा, कभी पाया नहीं,
जो पाया, कभी सोचा नहीं,
और जो सोचा, कभी मिला नहीं,
और जो मिला, कभी रास आया नहीं,
जो खोया हुआ है, वह याद आता है,
और जो पाया, संभाला जाता नहीं,
     क्यूं अजीब सी ये जिंदगी,
      कोई सुलझा पता नहीं।”
    ” मैं अपनी जिंदगी  में हर किसी को ‘ अहमियत ‘ देता हूँ . . . क्योंकि जो ‘ अच्छे ‘ होंगे वो ‘ साथ ‘ देंगे । और जो ‘ बुरे ‘ होंगे वो ‘ सबक ‘ देंगे . . . जिंदगी जीने के लिए सबक और साथ दोनों जरुरी होता है । मैंने अपनी ज़िदगी में सारे महंगे सबक सस्ते लोगों से ही सीखा हूं ।
     चक्रव्यूह रचने वाले सारे अपने ही होते हैं । ‘ कल भी यही सच था और आज भी यही सच है . !  संभाल के रखो अपनी पीठ को यारो . !  शाबाशी और  खंजर दोनो । यहीं पर मिले है , मुझे। पीठ हमेशा मजबूत रखनी चाहिए क्यूंकि शाबासी और धोखा दोनों पीछे से मिलते हैं । जो आज हंस के खेलते है, कल रो के भुला देना होता है…Classmate भी बिजली के दो तार जैसे होते है, जो साथ- साथ समन्तर चलते हैं, साथ न मिलते ,न दूसरे को मिलने देते है, इन में जलने की शक्ति अधिक होतो है।
     मेरा सहयोग सब के लिए  इतना ही है, जीवन में । जैसे पाखुरी का सहयोग सब फूलों के लिए ही होता है, जब बिखर जाता है  तब पाखुरी देखकर कठिन हो जाता है पहचान पाना की यह किस फूल का देह का हिस्सा हैं।’
“कलयुग नहीं मतलबीयुग चल रहा हैं ।”
टूट जाउंगा , रो लूउगा , बिखर जाऊंगा, मगर हिम्मत नहीं  हारुगा , फिर देखना आप दुनियां में ‘ मैं कितना ऊपर उठता हूँ . . ॥
क्षितिज उपाध्याय”किशोर”
 
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