जन - गण - मन - उत्थान Mass-mind kavita hindi poems

 जन – गण – मन – उत्थान

 आओ हम सब देश बनाये सबसे सुन्दर ।

 जहाँ न हो टकराव विवसता इसके अन्दर ।।

 शिक्षा , स्वास्थ्य , सुरक्षा की मजबूत व्यवस्था ।

 जन वितरण में न्याय फले , सेवा में आस्था ।।

 शोषण मुक्त समाज बने , नही पक्षपात हो ।

 संवाद , सुअवसर , सहज , सुलभ सब कृपा पात्र हो ।।

 महत्वकांक्षा टालो , सेवाव्रत सम्भालों ।

 राष्ट्रहित का भाव भरो , सबको अपना लो ।।

 नहीं द्वेष , दुर्भाव परस्पर मैत्री रखकर ।

 जाति , धर्म , भाषा आवास से ऊपर उठकर ।।

 बढ़े चलों यह स्वर्गभूति है भारत भू – पर ।

 इसकी गरिमा का दायित्व है हम और तुम पर ।।

 ज्ञान और विज्ञान , धर्म का आश्रय लेना ।

 योग और अध्यात्म शुचिता पर बल देना ।।

 सदाचार अपनाना , नैतिकता , अनुशासन ।

 कर्तव्य निष्ठ बन राष्ट्रहित का ही अनुपालन ।।

 गुंजे नभ में भारत माता का जयगान ।

 मिल – जुलकर हम कर पाये जनगण उत्थान ।।

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