उस दिन दुल्हन के लाल जोड़ें में नफरत फैलाया होगा
क्षितिज उपाध्याय “किशोर”
उस दिन दुल्हन के लाल जोड़ें में नफरत फैलाया होगा ,
टीचर और कुछ सहेलियों ने उसे सजाया होगा।
मेरी जान के, गोरे हाथों से क़लम उठावाया होगा,
टीचर ने मेरा अखत लिखवाया होगा।
बहुत गहरा चढ़ेगा नफरत का रंग,
उस खत में उसने मेरा बहुत बात छुपाया होगा।
रह-रह कर रो पड़ी होगी,
जब भी उसे मेरा ख्याल आया होगा।
खुद को देखी, जब आईने में,
तो अक्श उसको मेरा नजर आया होगा।
लग रही होगी खुश पर,दिल भी दुख रहा होगा,
चाँद भी उसे देख कर शर्माया होगा।
उस दिन मेरी जान ने अपने ,
माँ-बाप की इज्जत को बचाया होगा।
उसने सच्ची बेटी होने का फ़र्ज निभाया होगा।
मजबूर होगी वो बहुत ज्यादा,
सोचता हू, कैसे खुद को समझाया होगा।
अपने हाथों से उसने हमारे खत को ,
साहब के पास पहुँचाया होगा।
ख़ुद को मजबूर बनाकर उसने,
दिल से मेरी यादो को मिटाया होगा।
भूखी होगी वो, मैं जानता हु,
पगली ने कुछ ना, मेरे बगैर खाया होगा।
कैसे संभाला होगा , खुद को
जब फिर से साहब ने बुलाया होगा।
कांपता होगा जिस्म उसका,
जब साहब ने पूछा होगा।
उस वक़्त रो-रोकर बुरा हाल होगा,
जवाब Yas or No में हुआ होगा।
रो पड़ी होगी, आत्मा भी,
दिल भी चीखा-चिल्लाया होगा।
उस दिन दुल्हन के लाल जोड़ें में नफरत,
टीचर और कुछ सहेलियों ने उसे सजाया होगा।
मेरी जान के, गोरे हाथों से ,
टीचर ने मेरा अखत लिखवाया होगा।
उसने अपने माँ-बाप की इज्जत के लिए,
उसने अपने खुशियों का गला दबाया होगा।
मेरे आँखों में आँसू नहीं , बस कुछ “ नमी ” है . .
वजह Tu नहीं , Teri ये “ कमी ” है ,
अंदाज़े से न नापिये ,किसी इंसान की हस्ती को . .
ठहरे हुए दरिया अक्सर ,गहरे हुआ करते हैं . !
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Mai tumhara bhut bara fan hu…
Thanks Bhai….