देश भक्ति का सकल्प

 डा ० जी ० भक्त

 पंद्रह अगस्त ,

 स्वतंत्रता दिवस ।

 कैसे मनाएँ हम बरवस ,

 कोरोना में देश पड़ा है विवश ।।

 आ पड़ा है सिर पर बड़ा टास्क ,

 डिस्टेंसिंग – सैनिटाइजिंग और यह मास्क ।

 इससे हम हो रहे ओवर टास्क ,

 कोरोना की लहर है विश्व में व्याप्त ।।

 संवेदित हो नजरों मे नमी ले माँ भारती ,

 जन मन संत्रस्त , न जागृति न भक्ति ।

 व्यथित है हृदय स्तब्ध , हस्त आरती ,

 विनम्रता की कुंजा हमे बना रही शरारती ।।

 करुण कराल व्याल के विशाल गाल खुल रहे ।

 विनाश की भूचाल लगे नगाणिराज जुझ रहे ।।

 स्वराज की जो कल्पना तुषार बन झुलस रही ।

 सुवन्दना उत्कर्ष की ज्वाला बनी दहल रही ।।

 शोषण पर हो न्याय , उपेक्षा पर कड़ा नजरिया ।

 टच व्यवस्था सदा जरुरी , सबका जरिया ।।

 स्वस्थ सोच सम्मान श्रम का सदा जरुरी ।

 लेकिन खड़ी विषमता , जीविका की मजबूरी ।।

 कैसे , मिटे , कहाँ से पायें सबकुछ समरस ।

 इसके चलते जीवन बन कर रह गया कशरत ।।

 मिलकर हम सब दूर भगाएँ मन की जड़ता ।

 यही मूल मंत्र है , जग को मिले स्वतंत्रता ।।

जाऊँ कहाँ , भुलाकर धरती तुझे ,

 धूल में हम फूल लिए विकल है भारती ।

सांस में है आश मत निराश कर तू ,

 ध्वंश की आग बुझे सजा रहा हूँ आरती ।।

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