खिचड़ी
जाड़ा ले आयी जनवरी ।
लोग उड़ाते चूड़ा दही ।।
चीनी कितनी महंगी हो गयी ।
मीठा पर भी गरमी आ गयी ।।
पानी वाला दूध मंगाया ।
किसी तरह से दही जमाया ।।
छाली पड़ी न उस पर थोड़ी ।
चूड़ा पर से बह गई मोड़ी ।।
भूड़ा डालकर काम चलाया ।
किसी तरह सकरात मनाया ।।
तिलबा , मूढ़ी और कसाढ़ ।
बच्चे सबने कर ली मार ।।
छत पर देखो उड़ी पतंग ।
करदी सबकी नाको दम ।।
बनी रात को खिचड़ी सुन्दर ।
मम्मी थी किचेन के अन्दर ।।
चोखा पापड और अचार ।
सब्जी की लग गयी भरमार ।।
कौर उठाया पहले भैया ।
दही डाल दी उसमें भैया ।।
कितना सुन्दर है सकरात ।
चूड़ा दही की बरसात ।।