जीवन पथ Hindi poems, Hindi Kavita,

 जीवन पथ

नदियों के पावन तट पर , प्रमुदित मन मानव बैठा ।

था सोच रहा जीवन का , पथ सुन्दर संगम जैसा ।।

जो प्रगत प्रपात सरीखा , प्रवाहित निर्मल यश हो ।

निःशब्द छलकता जल सा , सस्वर लहरों का लय हो ।।

उद्याम जगत का जीवन , जुड़कर किरणों के पथ से ।

चिड़ियों का कलव गुंजन , सरसाता निशदिन नभ से ।।

उस जीवन की लहरी में , सोती – जगती यह सृष्टि ।

तारों की झिलमिल झांकी , करती आकाशी वृष्टि ।।

भर कर मन मोद पिरोया , चंदा की सौम्य कला से ।

उर में आभा – सी आयी , छनकर उस तिमिर घटा से ।।

विश्राम नहीं , शान्ति है , चिरजीवन ही लक्षित है ।

इस धरती के आंगन में , दिन रात जहाँ चर्चित है ।।

सुख सरिता की मृदुमाया , कर्मो का दामन थामे ।

है गरज – गरज कर कहती , अर्पित हो कर्म कथा में ।।

सो मौन व्यथित वह मानव , अवलम्ब धैर्य का पाया ।

ली बाँध गाँठ मानस में , उत्साह हृदय में लाया ।।

तब तक अम्बर में छायी , लाली प्रभात की कुसुमित ।

फूलों के सौरभ से मिल , मुक्ता बन भू पर सुखरित ।।

हो प्रकट दिवाकर जगके . नहलाया उषा किरण से ।

जा जुड़ इस जीवन पथ से , ले मुक्ति जरा मरण से ।।

यह सुबह नहीं नव जीवन , यह अंत नहीं संध्या का ।

सुख – दुख का खेल मिचौनी , यह क्रम है अमा – प्रभाका ।।

चिर शान्ति नहीं कोलाहल , शुभ चिंतन और उद्बोधन ।

कर बोध सतत निज मन में , यह कभी नहीं सम्मोहन ।।

सब दिन आती रहती है , नूतन प्रकाश की बेला ।

जीवन उसमें सरसाता , तू केवल नहीं अकेला ।।

यह धरती है संसाधन , साथी साधक हम उसके ।

है धर्म हमारा इस पर , जीवन जीना है बच के ।।

सुख सरिता नहीं अमरता , वह मृत्यु का कारक है ।

सम्मोहन उसका त्यागो धातक कारक नाशक है ।।

यह बोध हृदय में आया , जागा युग – धर्म जगत का ।

बस प्रेम कर्म का सम्बल , शास्वत चिर अमर भरत – सा ।।

नहीं बंधन कहो इसे तुम , मुक्ति का साधन जानो ।

संतुष्टि कर्म में पाकर , चिर जीवन को पहचानो ।।

है श्रेय कर्म जीवन में , अर्पित हो जन पर जाये ।

वह श्रेय नही जिसका फल , अपनों में सिमट समाये ।।

फल मीठा सबसे प्यारा , जो जनहित को सरसायें ।

है काल – कूट वह सुख , जिसका ऋण बढ़ता जाय ।।

यह रोग , शोक बन्धन जो जग जुटा रहा जीवन में ।

है न्याग एक ही औषध , जो तुष्टि दे परिजन में ।।

त्याग तुष्टि का संगम ही ,

 है प्रेम जगत में ।

 बिना एक का फलित ,

 प्रेम कभी दिखाना पथ में ।।

 मूल्य त्याग का मिलता ,

 ही है कभी न भूलों ।

 अगर भूल हुई कुछ भी ,

 तो जल्दी उसे कबूलो ।।

 ( डा ० जी ० भक्त )

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