कहानी अठन्नी की
एक थे नाना एक थी नानी ।
दोनो ने मिल रची कहानी ।।
दीन – हीन पर पुरूष प्रवीण ।
आदर्श मय जीवन सोच नवीन ।।
असन – वसन आवास में सादगी ।
कभी किसी से नहीं नाराजगी ।।
शान्ति पूर्ण सद्भाव प्रेम का ।
सदाचारमय भूषण जिनका ।।
दिखता था व्यवहार सदा नव ।
जीवन का उत्कर्ष बना जब ।।
परिजन पालन का उन्मेष ।
जागृत फलित न किंचित द्वेष ।।
नीति नियम के पक्के नर थे ।
भेद – भाव से सदा दूर थे ।।
वाणी उनकी सरस मधुर थी ।
जन – मन की पीड़ा हरती थी ।।
उपवन सा सुन्दर परिवार ।
हरा भरा लगता घर द्वार ।।
उनके बच्चे बड़े सुशील ।
मिलते जुलते रहते हिलमिल ।।
परिजन पुरजन दिखे प्रसन्न ।
ऐसा था उनका आचरण ।।
सादा जीवन उच्च विचार ।
करते प्रकट सभी आभार ।।
वैसे ही थे उनके परिजन ।
बाल किशोर युवक और वृद्धजन ।।
मिताहार मितव्ययी मित भाषी ।
सत्त सौम्य नहीं दिखी उदासी ।।
एक बात थी बड़े महत्त्व की ।
सबसे छोटे पुत्र के मनकी ।।
वैसा सुधी प्रबुद्ध बालक में ।
भाव भरे महान साधक के ।।
पढ़ता था चौथी कक्षा में ।
लिए लक्ष्य उत्कर्ष जीवन के ।।
माँ ने एक दिन सौंप अठन्नी ।
बोली रखलो जेब में अपनी ।।
करना खर्च सोचकर मन से ।
नहीं गवाना रखो जतन से ।।
रखा युक्ति से तीन वर्ष तक ।
जब तक पहुँचा अष्टम वर्ग तक ।।
उसने एक खरीदी कॉपी ।
कर संकल्प महान लक्ष्य की ।।
लिखा लेख एक उसन मन से ।
पाया पुरस्कार आयोजन में ।।
एक वर्ष का फुटकर खर्च ।
पा प्रफुल्लित मिला सहर्ष ।।
चिर अनुप्रणित होकर बालक ।
बना लक्ष्य लेखन का पालक ।।
आज बना वह सफल साहित्यिक ।
विश्व धरातल पर प्रतिष्ठित ।।
यह संस्कार दिया परिवार ।
आदर्शो का ही उपहार ।।
बच्चों , घर विद्या का मंदिर ।
शिक्षण का यह केन्द्र सुरक्षित ।।
पालन पोषण संदर्शन हित ।
ज्ञानालय आश्रम बन चर्चित ।।
घर को कभी न भूलो बच्चों ।
सदा समादर मातृ पितृ जन ।।
उनकी सेवा ही निर्झर बन ।
प्रस्फुटिव करता है जन जीवन ।।
डा० जी० भक्त