जीवन में कर्म
क्षितिज उपाध्याय “किशोर”
हर दिन कर्म करते है, लोग
जिसको याद करते है, सब लोग
सब कुछ कॉपी करते है, लोग
कर्म नहीं करते भी है, लोग
हर दिन कुकर्म करते है, लोग
जिसे, जीते-जी मार डालते है, लोग
अच्छे कर्म करते है, कुछ लोग
जिसे, मरनें के बाद भी याद करते है, सब लोग
अच्छे कर्म वह जो कहनी बन जाए।
जिसकी याद हर की जुबानी बन जाए।
जिसके आइने में झलकें औरो का कर्म।
वैसा महान एक आदमी बन जाए
तभी सार्थक है , हमारा जीवन।
तभी मतलब है, जन्म दिवस की सारी खुशिया।
तभी मतलब हौ, नवोदय कि शिक्षा।
सारी आशाएँ, कर्म पर टिके है, हमारे।
हम सफलताओ के शिखर पर।
ऐसे चढ़े की आकाश भी झुक जाये।
फट जाएगें बन्धन पहाड़ो के।
और जाने के बाद फिर बुलाये दुनिया।
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