जागरण गीत
डॉ० जी० भक्त
जागरण के गीत हम गायें गमों से दूर हटकर ।
देश का उत्थान चाहें , कर परिश्रम खूब डटकर । ।
हम कृषक मजदूर अर्जक , और उत्पादक कहाते ।
राष्ट्र का भंडार भरते पेट की ज्वाला मिटाते । ।
आय का जरिया अनोखा , स्वर्ण चाँदी मोतियों – सा । ।
अन्न , सब्जी , फल , मशाले प्राण बनते मंडियों का । ।
क्या हमारी दुर्दशा पर न्याय का कांटा झुकेगा ।
क्या किसानों की समस्या को कभी नेता सुनेगा । ।
अब नही हम मौन रह सकते . अशिक्षा और भय से ।
जागरण का स्वर जगा है , जुड़ गये हैं एक लय से । ।
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