वसन्तोत्सव

   डॉ० जी० भक्त

सरसो के फूलों से सजकर ,
 अमुआँ के मंजर से मिलकर ,
 चली हवा लेकर मकरंद ।
 शिशिर महीना माघ , वसंत । ।
  नदियो की लहरो से उठकर ।
   सूरज की किरणो के पथ पर ,
   कमल फूल पर आसन देकर ,
   वीणा पुस्तक कर में लेकर ।
   फूलों पर भौंरा आ गूंजा ,
    घर – घर होती सरस्वतीपूजा ।
    फल , मेवा पकवान मिठाई ,
    ज्ञान प्रेम का दीप जलाई । ।
    आयी शरदा देवी घर में
     ज्ञान प्रभा फैलाकर मन में ।
      मुखरित कर दी मीठे स्वर दे ,
      वर दे , वीणा वादिनी वर दे । ।
      फूलों से मंडप हैं सजते ,
      गीतों के कैसेट हैं बजते ।
      वीणा पुस्तक रंजित हस्ते ,
       भगवति भारती देवि नमस्ते ।
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