श्रद्धा सुमन
हर पल ,
हर दिन ,
हर वर्ष ,
आदिकाल से ही
जैविक सृष्टि का सिरमौर ,
शिशु , बालक , कशोर ,
युवा प्रौढ और वयोवृद्ध ,
होते रहे सब काल विद्ध
सृर्जन – अर्जन का क्रम ,
वर्जन – भर्जन का चक्र ,
गर्जन – तर्तन का भ्रम ,
प्रसवन – निर्गमन का हम्र लेकर
उदित हुआ मानव भूपर
हँसते किलोलों में ,
दुख के झकोरों में ,
उत्सव के उमंगों में ,
मृत्यु के तरंगो में ,
खोया जीवन ।
भैतिक काया का विसर्जन !
स्वार्थ जीवन का पथ ,
तृष्णा कर्म का रथ ,
आशा मनोरथा का चालक ,
व्यसन इन्द्रियों का प्रेरक ,
चंचल और नश्वर ।
प्रतिस्पर्दा और घृणा परस्पर । ।
विकास का व्रत ,
उद्धार का संकल्प ,
रक्षा का प्रण ,
अनीति का विकल्प ,
बनकर ही हम ।
विजय पाये हरदम । ।
ऐसा ही था कोई मनुज , .
श्रेष्ठ , समदर्शी , सुवीर ,
जिसकी ज्योत्सना फैल रही ,
भारत वासियों में सुदूर ,
बनकर चेतना का प्रवाह
जानो वह थे प्रेरणा प्रसाद । ।
दीन जनो के प्राण ,
जन – जन के प्रधान ,
ये ये नेता महान ,
सम्मानित नर रत्न ,
अर्पित हो उनको नमन ।
चढ़ाओ, उन्हें श्रद्धा सुमन।।
डॉ0 जी भक्त,
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