जन – गण – मन – उत्थान
आओ हम सब देश बनाये सबसे सुन्दर ।
जहाँ न हो टकराव विवसता इसके अन्दर ।।
शिक्षा , स्वास्थ्य , सुरक्षा की मजबूत व्यवस्था ।
जन वितरण में न्याय फले , सेवा में आस्था ।।
शोषण मुक्त समाज बने , नही पक्षपात हो ।
संवाद , सुअवसर , सहज , सुलभ सब कृपा पात्र हो ।।
महत्वकांक्षा टालो , सेवाव्रत सम्भालों ।
राष्ट्रहित का भाव भरो , सबको अपना लो ।।
नहीं द्वेष , दुर्भाव परस्पर मैत्री रखकर ।
जाति , धर्म , भाषा आवास से ऊपर उठकर ।।
बढ़े चलों यह स्वर्गभूति है भारत भू – पर ।
इसकी गरिमा का दायित्व है हम और तुम पर ।।
ज्ञान और विज्ञान , धर्म का आश्रय लेना ।
योग और अध्यात्म शुचिता पर बल देना ।।
सदाचार अपनाना , नैतिकता , अनुशासन ।
कर्तव्य निष्ठ बन राष्ट्रहित का ही अनुपालन ।।
गुंजे नभ में भारत माता का जयगान ।
मिल – जुलकर हम कर पाये जनगण उत्थान ।।
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