गंगास्नान
गंगा की महिमा अपार है ।
शिव की जटा से निकसित धार है ।।
विष्णु के पद का प्रपात है ।
मनि भागीरथ तप प्रसाद है ।।
दर्शन मज्जन पान जगत को ।
पावन करता जल हम सबको ।।
इसकी गाथा सब कोई गाते ।
जीवन को नित श्रेय दिलाते ।।
सूर्य चंद्र और धरती माता ।
जीवन में सुख साधन दाता ।।
नदियाँ सागर निर्झर इसके ।
पावन पथ निर्भर है जब से ।।
जल जीवन वन व्याप्त जीव में ।
पोषण सिंचन जीवन जग में ।।
गंगा जैसी अगणित धारा ।
शीतल करती है जग सारा ।।
गोदावरी गोमती गंडक ।
हरती रहती सब के संकट ।।
पतित पावनी सब कहलाती ।
गंगा से जब सब मिल जाती ।।
गंगा सागर का संगम फिर ।
अमृत रही उड़ेल उसमें गिर ।।
जलधि उदधि पयोधि बनकर नित ।
नील गगन धन हरित भुवन हित ।।
प्रेम पीयूष प्लावित हो पाता ।
सृष्टि पालिका गंगा माता ।।
कार्तिक मास पूनम अभियान ।
सुखद समागम पुण्य स्नान ।।
डॉ . जी . भक्ता