नव वर्ष में हम कहाँ

डा० जी० भक्त

नये वर्ष का हर्ष नया, कुछ सोच नयी, कुछ ख्याल नया।
उत्कर्ष नया, स्पर्श नया, कुछ हाल नया, उत्साह नया ।।
जीवन की चाह सबाल लिए, उद्धार और बदलाव भरे।
पिछली बातों की याद जहाँ, भावी चिन्ता के प्रश्न खड़े ।।

आया चुनाव और चला गया, नूतन कुछ आगे दिखे खड़े।
जो बचा अधुरा सिसक रहा, आगे की गिनती कौन करे ।।
जहाँ सत्य बचन अधिकार चाहता, संघर्ष का धक्का कौन सहे।
बढ़े विकास और मिटे गरीबी, नैतिकता सामने खड़ी ।।

जहाँ योजना पीछे रह गयी, नवाचार के स्त्रोत खुले।
रुप अनेकों दिखे अनैतिक, भ्रष्टाचार हम भूले नहीं।।
न्याय मिले, होवे सुधार, निर्माण दूर लटकी है आँखें।
सब में तेज डिजिटल भैया, दूर से दिल्ली सदा दिखी।।

कोई अतीत को ढूढ़ रहा तो कोई सनातन षर दे ध्यान।
कोई को वर्चुअल दिखे आसानी, ए.ई. बन आयी वरदान ।।
कोई मानवता को ठुकराता नवाचार की यह पहचान।
शंका, धोखा सभी अनोखे, राशन से सबका कल्याण ।।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि बिहार सरकार है पोषणहार।
हो अकाल सुखार बाढ़ या महंगाई है लगातार ।।
भारी से भारी संकट में पर्व मनाते बारम्बार ।
उसे व्रत की संज्ञा देकर खाये घास या रहे उपवास ।।

हम भारत के धर्मावलम्बी मिताहारी मितव्ययी संतोषी ।
घर में आंटा नहीं तो जाकर चट्टी पर है चौका देते।।
बच्चे भले ताकते आशा, पापा लड्डू लाते होंगे।
सुबह सबेरा होते मम्मी को झाडू लगाते ही देखे ।।

अब हम सोच रहे कुछ ऐसा जैसा नितीश जी कर गये वैसा।
रुपये की कोई कमी नही, पैसे को भी पूछे न कोई ।।
ऑनलाईन पर आर्डर देंगे, नये वर्ष को जो हो अच्छा……..।
दिनभर ताका राह, न पाया खाता नम्बर दिया न कोई ।।

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