डा० जी० भक्त
द्वापर युग की कथा पुरानी। कंस नाम का एक अभिमानी।।
देवकी नामकी बहन सुशील। उसके पति बासुदेव धर्मशील ।।
हुई विदायी चली बहन। पहुँचाने साथ था कंस ।।
बीच मार्ग की सुने कहानी। चलते राह सुनी नमवाणी।।
सुनो कंश तुम पर है काल। होंगे तेरे संग भांजे आठ ।।
जब जन्मेगा अष्टम बार। तेरा कर देगा संहार ।।
लौटा जब पहुँच कर कंस। कारा में जल्दी कर दी बंद ।।
किसी प्रकार सात को मारा ।अष्टम बार तो जी घबराया।।
भादो मास अष्टमी तिथि। रात अंधेरी बरसाती थी।।
जेल में बच्च की आवाज। सुनी पिता उसकी आवाज ।।
शंकर जी कृपा से कैसी वासुदेव की खुल गयी बुद्धि ।।
जैसे पहुँचे कारा द्वार खुली किवार सोये रखवार।।
यमुना भरी बरसता मेघ। बालक के रक्षक थे शेष।।
नन्द बाबा स हो गयी भेंट। सफलीभूत हुई उनकी टेक ।।
देखे कैसा सुन्दर योग। बच्ची जन्मी रोहिणी की गोद।।
उलट-पुलट का किया विधान। संकट बना भव्य वरदान।।
सुनिये कथा हुआ यह कैसे। दूध मलाई पानी जैसे ।।
हंस न्याय का सदा सहारा । लेता कंस पाप का खतरा ।।
बासुदेव पाये भगवान। बच्ची ने जी दी वरदान।
अरे मूर्ख तू क्या देखता। तेरा भंजक कही जा निकला।।
कृष्णा जन्म की कही कहानी ।गोकुल गाँव यशोदा रानी।
मूल रहस्य कृष्णावतार की। श्री शंकर पार्वती ही रच दी।।
श्री रामचन्द्र मिथिला मे जो कुछ। भाव व्यक्त कर गये त्रेता में।।
शिवजी कहे शिवा से हम तुम। मिलकर करे विचार बहुत कुछ।।
मैं बन जाउँ राधा और। भवानी कृष्ण लीला धारी।।
बड़ी खशी से पार्वती शंकर मिल जोड़ लगाई।
अपनी भूमिका लायक नायिका ढूंढ़ सटीक ।।
राम श्याम जानकी श्यामली। राधा वृष भानुकुमारी।।
कृष्ण के पार्टनर बनी कालिका वन गयी कृष्णा मुरारी।।
इयम् यथेष्ट योग का कल्पन भूषण काव्य मंझारी।
सो रस है साहित्य सरोवर, कृष्णा कलेवर जानी।।
आज मनाते जन्मोत्सव हम। अमर संस्कृति बनकर धर्म।।
होता है आश्चर्य जानकर। कृष्ण लला की पृथक कथा।।
इसको पाकर लगा अजीव सा।
पायेंगे कल्याण अंक में वृहत रुप में छपा हुआ ।।
कल्याण अंक 93, संख्या-01, पृष्ट सं0-172