नया वर्ष और दम तोडता भारत वर्ष
डा ० जी ० भक्त
नये वर्ष में कैसे हर्ष मनाएँ हम ।
करते करते घोर प्रतिक्षा टूटा दम ।।
कोविद -19 का संक्रमण सताया जगको ।
दुनियाँ भर के देश झेलते रहे कष्ट को ।।
मरने वालों की पुकार को सुनान कोई ।
डब्ल्यू . एच . ओ . ने भी अपनी गरिमा खोई ।।
मिट गयी मर्यादा चिकित्सा हुयी खोखली ।
नही वैक्सिन नही मेडिसिन सबने कह दी ।।
कहाँ गया विज्ञान विश्व की शान देखिए ।
खोकर भी सम्मान जरा अभिमान परखिये ।।
कौन करेगा दुनियाँ में जीने की आशा ।
जहाँ कराह रही मानवता खो प्रत्याशा ।।
वर्ष बीतने गया नवम्बर 19 सन की ।
मिटा न दुर्विन आज वही है हालत जन की ।।
लाखो लाश जमी के अन्दर दुखरे रोते ।
और वचे जो जितने वे हुंकार है भरते ।।
कहाँ गयी वह शान कहाती महा शक्ति है।
एक रवुराक जीवन रक्षा हित नही बनी है ।।
बड़ी बड़ी शक्ति के साथ भारत को देखो ।
है प्रभावित वह भी किन्तु बढ़ कर सोचो ।।
है कुछ ऐसी बात की हस्ती टिंकी हुयी है ।
जो कुछ करता है पर गरिमा बची हुयी है ।।
हुयी भूल की शासन देश पर सोचन पाया ।
आयुर्वेद को गले लगाने से ठुकराया ।।
लेकिन वही आज भारत का गौरव रख कर ।
सर ऊँचा कर बोल रहा इसके ही बलमरा ।।
एक बात पर अमल है करना उसे जरुरी ।
जिसके बल पर जम सकती गरिमा का धूरी ।।
आदर करना सीखो जन को गले लगाओ ।
दूसरो को मत लूटो कुछ तो त्याग दिखाओ ।।
नही महत्त्वाकांक्षा तेरी अमर रहेगी ।
मानवता की आह तुम्हे नितदिन खटकेगी ।।
नही टिकेंगी हस्ती जो लोभी और भोगी ।
आज तुम्हारी दवा नही छूरी है चलती ।
जिसके कारण आज तुम्हारी दशा बिगड़ती ।।
चली आ रही , जो दस्तक फिर दिया दुवारा ।
वादा करते बिता वर्ष , क्या वैक्सिन आया ?
नहीं सफलता मिली तो तेरा क्या जाता है ?
ऐसे भी तो भोग चुके हो सभी जानतें ।
होमियोपैथी के बारे में भी है मानते ।।
वह भी है विज्ञान स्वास्थ्य का सच्चा साधक ।
पूर्ण निरापद , जीवनदायक कभी न बाधक ।।
एक बार मानवता के रक्षार्थ बढ़ो तुम ।
कर विश्वास जगत का पालक बन जाओ तुम ।।