भूल किसकी
1
कह सकता है कोई मुझकों राष्ट्र का द्रोही ।
चल बतलाये जनमत उसने कैसे खो दी ।।
देश आपका ही था , मतदाता थे अपने ।
सेवा में क्या भूल हुयी सुख हो गये सपने ।।
2
जो थे इमानदार काबिल थे , सेवक भी थे ।
करते थे कल्याण ध्यान सब पर देते थे ।।
कैसे उस मिट्टी से उनके पॉव फिसल गये ?
मूल्य निगलकर वोटर सब भी दूर छिटक गये ।।
3
ध्रुवीकरण और समीकरण कुछ काम न आया ।
तुष्टिकरण और आरक्षण का ढोंग रचाया ।
जनता का विश्वास जीतना बड़ी बात है ।
आकांक्षाओं को ठुकराना ही आघात है ।।
4
जनमत पाना लक्ष्य आपका सदा उचित है ।
जनमंगल का ख्याल हमेशा ही इच्छित है ।
राष्ट्रभक्ति का भाव निहित है इसमें सारा ।
नही उचित है रैली में देना कोई नारा ।।
5
भाव भुनाना हो तो सेवा ही सम्बल है ।
राज्य भोग से होता सदा देश दुर्बल है ।।
इतना से ही जनतंत्र मजबूत बनेगा ।
प्रगत और समृद्ध , शान्ति का दूत बनेगा ।।
6
जातिवाद और वंशवाद भी खुलकर देखा ।
भाई – भतीजा वाद का धंध चलते देखा ।।
राष्ट्रवाद का ही उल्टा अब क्षेत्र वाद है ।
इससे भी तो महत्वपूर्ण उपजाति वाद है ।।
7
बँटो और बाँटो तो देश पिछड़ नहीं सकता ।
ऐसी हो जागृति तो गौरव मिट नही सकता ।।
देखों कैसे मेढ़क सब है टर्र – टर्र करते ।
खड़े सड़क पर मानवाधिकार का नारा रटते ।।
8
नही रहेगा कोई राजनीति में कच्चा ।
प्रकट हुआ युग – धर्म लोकतंत्र का सच्चा ।।
जनतंत्र की अर्थी को अब ये ढोने वाले ।
चार नहीं , चौरासी लाख है होने वाले ।।
9
कहो चुनाव आयोग लिस्ट बनवा ले लम्बा ।
“ विकास स्तंभ ‘ की सच्चाई है नही अचम्भा ।
नही रहे कोई प्रजा , सभी राजा बन जायें ।
सभी बने बाबू , काबू अपना अजमायें ।।
10
इतने सुन्दर प्रखर विचारधारा के बलपर ।
नहीं उठेगा क्या भारत अब विश्व के उपर ।।
सब लेंगे नेतृत्व , नहीं अब कोई वोटर ।
गाँधी , लोहिया और जवाहर कहते रोकर ।।
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