दशहरा
विजया दशमी दूर्गा पूजा
(नारी जीवन में शौर्य और सम्मान की शक्ति भरने वाली)
डा० जी० भक्त
भारत की भूमि पर मातृ शक्ति का अवतार,
नवरात्रा उत्सव साधना का पावन त्योहार,
शौर्य और सौन्दर्य मे भी है महान संग्राम ।
सुरासुर संघर्ष रत माता दुर्गा देवियों को प्रणाम ।।
शक्ति, भक्ति, श्रद्धा, पूजन, और नम्र नमता,
ज्ञान-गरिमा, सिद्धि, महिमा, जागृति और ज्योति पूर्णा।
मातृ-दुर्गा, पूर्ण ऊर्जा, नारीत्त्व में पुरुषत्व भरकर,
पूज्या शारदीय देवि, समर नवधा घोर लेकर।।
आजुटी, मंडप सजा, पूजन हवन, प्रसाद साधन,
पान, फूल, नैवेद, पत्र, पवित्र, गंध, सुधा प्रसाधन।
याज्ञिक, भक्त, प्रबुद्ध पंडित, दीप मंडित मंदिरों में,
गान, बाध, वेदान्त पाठन, भजन, गुंजन हर घरों में।।
ज्ञान, शील, सुजान, साधना, श्रद्धा, शक्ति यथा भक्ति,
नव दिवसीय, पूजनोत्सव, भाँति-भाँति से समर्पित।
दान से बलिदान ध्यान प्रार्थना अभ्यर्थना से,
आराधना उपवास संयम शुचिता सुपान भोजन ।।
जब साधना, आराधना अभ्यर्थना सारी निभाकर,
मन हृदय की वेदना दुर्व्यसन दुर्गुण को मिटाकर।
आत्म शुद्धि वर्तिका को ज्वलित करके ज्योमिमय हो,
पूजनीया मातृ देवी को सर्मपण सकल मल को ।।
ले करो में शुभ्रता की विजय मालिका अब चले हम।
विश्व की सारी समस्या का करे निदान हम सब ।।
द्वेष दुसह विनाश करना ही हमारा व्रत बने नित।
वेदना की पीर का जग से निवारण विजय चर्चित ।।