रक्षाबन्धन
डा० जी० भक्त
रक्षाबन्धन का त्योहार,
हमे जताता बहन का प्यार।
रक्षा सूत्र लेकर वह आज,
पहुँचेंगी भाई के द्वार।।
पर्व हमारे यादगार हैं,
जन्म-जन्म का प्यार छिपा है।
जिससे जुड़ी बहन की व्यथा,
करके याद अतीन की प्रथा ।।
है प्रतीक प्रगाढ़ संकल्प का,
युग का प्रगाढ़ इतिहास बताता।
किन्तु आज के बातायन में,
स्नेह पाश को टूटते पाया।।
द्र देश में पलती बहना,
भारी पड़ा भाई का जाना।
अर्थ, परिश्रम, व्यस्त समय का,
कारण सहज दिखा बतलाना ।।
विरल स्नेह और ममता धतरी,
बनी दिखाना या आडम्वर।
विविध स्वाद की बनी मिठाई,
रंग बिरंगे सूत्र पिरोकर।।
चहरे पर मुस्कान हाथ में,
राखी बंधी, विदा फिर होकर।
भाभी के आनन पर किंचित,
मनोमालिन्य उदासी पाकर ।।
माता पिता करें क्या सोचों,
उनकी दशा तो है और बेहाल।
अर्थ व्यवस्था, घर की तंगी,
उपभोक्तावाद का देख कमाल ।।
त्योहारों की सुखद संस्कृति,
बीच सड़क पर रोती ममता।
हृदय विदार के दृश्य देखलो,
वाहन से जब डरती है जनता ।।
पर्व सुखद, तो सबसे सुन्दर,
उसे मनाना अच्छी बात।
वह कैसे त्योहार जहाँ पर,
मर्मस्थल पर सदा आघात ।।
हमे सोचना तो उन्हीं के लिए है,
जो दुखों के गले गलते है।