कौआ Crow hindi poems poetry kavita balkvita Dr. G. Bhakta Xitiz

 कौआ

 कौआ तन मन का काला है ।

 कोयल बस तन की काली है ।

 दोनों मे इतना अन्तर ,

 कोयल की बात निराली है ।।

 कोयल की मीठी बोली ,

 कानों में रस बरसाती है ।

 कौये की तीखी बोली ,

 कानों में चुम – चुम जाती है ।।

 कोयल का है मोहक गाना ,

 सबके मन को भा जाता है ।

 कौवे का है कडुवा गाना ,

 सुनते ही मन घबड़ाता है ।

 बच्चों तुम भी मीठा बोलो ,

 कभी न कड़वी बात करो ।

 सबके मन की ही तुम बोलो ,

 हर को दिल से प्यार करो ।।

One thought on “कौआ , कौआ तन मन का काला है, कोयल बस तन की काली है ।”

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