जंग जीवन देन के लिए, जान लेने के लेने नहीं

डा० जी० भक्त

(1)

काल के गाल से गुजरती मानवता को,
शान्त्वना का संदेश कितना धीरज बंधायेगा ?
जुझती समस्या की आग जब तक न बुझा
करुण पुकार सुनने कौन आगे आयेगा ?

(2)

दुनियाँ का रंग दंग छेड़ रहा घोर जंग,
मन में उमंग भंग पीकर जो मस बना।
शान्ति का स्वांग देश भक्ति का म्यान लिए.
दोहरी तलवार मरवान चढ़ बोल पड़ा।

(3)

शान्ति के सपुतो विश्व प्रेम के प्रवर्तकों,
शताब्दी गुजर रही गाँधी जी को गोली लगे।
ताशकंद वार्त्ता की याद आज करते है ।
विश्व प्रेम के प्रण को हम व्यर्थ खोखला करते है।।

(4)

अर्थ को व्यर्थ जो विध्वंश में गंवाते थे,
देश के अर्जित स्वधन को जोश में जलाते है।
क्यों नहीं जठराग्नि दिनों की दलते उससे,
भ्रम में भूले आज स्वजनों पर गोले चलाते है ।।

(5)

एक दिन कचरों की गठरी ले जगत में,
गंदगी की गंध से मुह मोड़ अपना
कालिमा की कान्ति की जगह पर,
बुद्ध और ईसा को मत मानो तु सपना।।

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