“मुझे थोड़ा और रुकना था”
प्रियशी सूत्रधर (धलाई, त्रिपुरा)
“मुझे थोड़ा और रुकना था”
प्रियशी सूत्रधर,
आखिर एक दिन
मेरे दिमाग ने दिल से
यह सवाल पूछ ही लिया,
आखिर तुमने खोया ही क्या ?
जो आज तुम इतने परेशान हो
आगे से जवाब आयी
मैंने खोया कुछ नहीं
मुझे पता था सब
खत्म हो चुका था ।
मुझे पता था कहानी खत्म
हो चुकी थी; पर फिर भी,
मुझे थोड़ा और रुकना था ।
मुझे पता था उस वक्त मेरी जिंदगी बेरंग हो गई थी।
पर फिर भी मुझे थोड़ा
और रंग भरना था ।।
वह जो मेरे सारे सपने
एक पल में टूट बिखर गए थे
मुझे उन सपनों के पल में
थोड़ा और जीना था ।
मेरे चेहरे की वह मुस्कुराहट,
जो एक पल में, आंसू में
सिमट गई थी,
मुझे उस वक्त थोड़ा
और मुस्कुराना था । ।
मेरी आंखों के सामने
बिखर जाने वाली मेरी जिन्दगी
की किताब के पन्नों को
मुझे थोड़ा और पढ़ना था । ।
पता तो था मुझे
कि अब रास्ते अलग हो चुके थे हमारे,
पर फिर भी मुझे उसके साथ
उस रास्ते पर थोड़ा
और चलना था ।
मेरी हर एक कविता की
हर एक अल्फाजों में
बसने बाला वह शख्स,
मेरी प्यार मेरी आंखों के
सामने पराया हो गया था ।।
सच बताओ ना मुझे
उसके साथ थोड़ा और रुकना था ?
सफर तो कब का खत्म हो गया ।
सारे वादे टूट कर प्यार का
मंजिल भी धुंधला हो गया था ।।
पर मुझे उसके साथ ही
उस मंजिल को हासिल करना था,
साथ बैठके बात करने का,
सिलसिला तो खत्म हो गया था ।
फिर भी मुझे वहां थोड़ी देर और बैठना था ।
पता तो था वह मनाएगा नहीं,
फिर भी न जाने क्यों, मुझे थोड़ा और नाराज होना था ?
इतनी सी ही तो तमन्ना थी
मुझे थोड़ा और रुकना था । ।