प्रार्थना
श्रुति (वैशाली, बिहार)
ब्रह्म सृष्टि और देव अनेको ।
गुरु पितु-मातु फिर मित्र घनेरो ।।
भूमि धेनु सरिता फिर पर्वत ।
तरु फल फूल बादलनभ वर्षत ।।
जिनका कृपा पात्र यह जीवन ।
साधनहीन करुँ क्या पूजन ।।
भाव अभाव न नाम स्मरण ।।
है अलम्य तब चरण शरण ।।
मैं हूँ जीव जगत मेरा घर ।
सबका स्नेह हमारे उपर ।।
तू निर्गुण पहचान न पाऊँ ।
कैसे तेरा चरण दबाऊँ ।।
ज्ञान मार्ग है अगम हे प्रुभवर ।
भक्ति भाव तप हैं अति दुस्तर ।।
सेवा का व्रत हमें सिखा दो ।
कल्याणकारी पथ हमें दिखादो ।।
जीवन हो उत्सर्ग हमारा ।
मेरा लक्ष्य और तेरा सहारा ।।
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