जीवन के सार का उल्लास भरा त्योहार है होली
देह प्राण के साथ है जीवन ,
आत्मा का नव अवतार है जीवन ।
यही प्राण का मंदिर पावन ,
इन्द्रियाँ जीव का कर्ममय साधन ।।
प्रकृति मन का उद्दीपन है ,
मन सूक्ष्म इन्द्रियाँ स्थूल है ।
मनेन्द्रियों का खेल कर्म है ,
मनोभव का प्रतिमान रुप है ।। 1 ।।
मन प्रेरक तो प्राण प्रवर्तक ,
स्थिति प्राण की आयु सीमा ।
देह फिरे आत्मा को लेकर ,
शास्वत कर्म अशास्वत जीना ।।
कर्म ही जीवन की संज्ञा है ,
कर्म ही आत्मा की पहचान ।
कर्म ज्ञान अनुभूतिगम्य है ,
इससे जीवन बना महान ।। 2 ।।
प्रकृति – सृष्टि की एक ही सत्ता ,
सृजन किया जिसे परमात्मा ।
सजीव – निर्जीव दो रुप उसीका ,
उभय परात्पर पूरक बनता ।।
मनौदैहिक स्वरुप में व्याप्त यह ,
आत्मा रही सदा अविनाशी ।
देह की सत्ता सदा विनाशी ,
निगमागम है उनके साक्षी ।। 3 ।।
प्रलय विलय उद्भव विकास का ,
जन्म मरण ही रहा विधान ।
भले – बुरे , पराये अपने ,
प्रेम घृणा मिल एक समान ।।
आनंद उमंग हास अवसाद वश ,
लोभ क्रोध ममता और स्वार्थ ।
मान सम्मान और विजय गान ही ,
मानव का कल्याण परमार्थ ।। 4 ।।
है विश्व का अनमोल रत्न ,
यह मनु पुत्र महान है मानव ।
सृष्टि का है मात्र धरोहर ,
जो विपरीत गया वह दानव ।
कर्म ही जीवन , प्रेम सम्वरण ,
ज्ञानोन्मेष जग का उपकार ।
स्मरणीय नहीं , मान्य , पूज्य वह ,
दिया जगत को प्रेम प्रकाश ।।5 ।।
उसी की सत्ता में मानव की ,
एक मात्र उत्तम उपहार है ।
शास्वत जीवन की सार है ,
उल्लास भरा हास ही व्रत और त्योहार है ।
होली , राम नवमी , विजयदशमी दिवाली ,
राखी जन्माष्टमी शिवरात्री महान है ,
मनोहर कथाएँ छिपायें अपने आचरण में ,
जीत उनकी गरिमा के गाता जहान है ।। 6 ।।
प्रेम परिपूरित उमंग रंग भंग लिए ,
घर – घर और गाँव – गाँव कैसा अनुराग है ।
तान – गान , खान – पान नूतन परिधान ,
और पूजन सम्मान में रंगा अनुहार है ।
बृद्ध युवा बालक नर – नारी विरादरी के ,
जाति और नाते का भेद आज झूल रहे ।
भावना की भूख को मिटाते गाते झूमते है ,
भारत की भूमि को गौरव से चूमते हैं ।
आपको एवं आपके पुरे परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
डा ० जी ० भक्त
आप और आपके पूरे परिवार को हँसी – खुशी भाईचारे तथा रंगों का त्योहार होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
क्षितिज उपाध्याय “किशोर”
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