शहर
शहर ! ढ़ा रहाहै कहर ।
चाँदी कटती है हर पहर ।।
चौड़ी सड़क ऊँचे मकान ।
सामानों से सजी दूकान ।।
भारी – भड़कम , चहल – पहल ।
भीड़ भड़ाके हैं हर पल ।।
रिक्शे ठेले की भरमार ।
तांगा टेम्पू लगे कतार ।।
सब्जी मंडी गोले कैसे-
काट रहे है कसकर पैसे ।।
शहर गाँव से कितनी दूर ।
मिलती है रोजी भरपूर ।।
जीवन व्यस्त बना है इसका ।
किन्तु व्यसनों का है चस्का ।।
खाना पीना और सिनेमा ।
लूट तस्करी चले रोजाना ।।
महंगे मिलते हर सामान ।
कहते हम सब देश महान ।।