कोरोना कहर समस्याएँ जिन्दगी की
समस्यायें बढ़ रही विश्व में कभी भाइयों भूल न जाना ।
इतिहास के पन्नों को रक्तिम आभा भर दिया कोरोना ।।
जूझ रही सारी दुनियाँ , फिर पता नही थमने का नाम ।
मानवकता की क्षति देख व्याकुल धरती के लोग तमाम ।।
नहीं चिकित्सा नहीं दवाई लेकिन इससे ठनी लड़ाई ।
तीन माह के अन्दर देखो कुछ भी भला नही कर पाई ।।
उत्पादन , व्यवसाय आय का गला घोंट डाला वह कौन ?
मृत्यु से बढ़कर बदहाली , ला डाला है लॉकडाउन ।।
मरने वालों की मत पूछो उनकी गरिमा की क्या गिनती ।
भूल गये सब सदाचार व्यवहार जगत में फर्ज न विनती ।।
मानवता को भूल मूल्य न रिश्तों का पालन पोषण का ।।
स्वार्थ मात्र है शेष श्रेय विहीन मानव जीवन का ।
शर्म धर्म सरोकार गया , न भाव रहान पूज्य पिताश्री ।।
श्वान गीध श्रृंगाल मनाते मोद , डिस्टेंसिंग ही इतिश्री ।
स्नेह और सौहार्द्र प्रेम फिर पातिव्रत का हुआ पलायन ।।
मानव की संस्कृति का ऐसा नही सुना था मृत्यु अपावन ।
भाग दौड़ का विकट दृश्य , संक्रमण का विपणन शुरु हुआ जब ।।
महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रों मे तब ठना द्वन्द का रौख कलरव ।
थमता नहीं , उभर कर फिर – फिर मानवता को चोटिल करता ।
राष्ट्रों में गर्माहट आतप राजनीति को बोझिल कराया ।।
गया वर्ष बीते सब वादे राजनीति कूटनीति अनीति के ।
कांटे चूम रहे देशों मे परदेशी के भाव उभरते ।।
समाधान की बाँट जोहती , वैक्सीन पर थम गई लड़ई ।
भारत वासी ठोक – ठोककर गाता फिरता विविध बड़ाई ।।
कटे धाव पर नमक छिड़कना और शिकंजा कसते जाना ।
शिक्षा पर दावानल फैला ऑन लाहन अब हुआ जमान ।
कहाँ गया विज्ञान , ज्ञान परवाह चढ़ा दुनियाँ को दोहन ।।
अरब और खरब डॉलर का बैटिंग पर करते आरोहन ।
जगत गुरु की दशा देखिए त्रसित और आक्रोशित कितने ।
टीकाकरण चलाते गाते गीत मनोहर दिखते सपने ।।
सोचो दुनियाँ वालों तेरा कान सहारा बनने वाला ।
वोट की गाड़ी चढ़ी सवारी प्लेट फार्म पर पहरे वाला ।।
चिन्ता एक मास्क पर रखना भोजन पानी सब बेकार ।
दिन में दारु रात को कर्फ्यू यही नाव का खेवनहार ।।
कह गये ट्रप सुनोजी जिम पिंग हम दोनों का बोट खुलेगा ।
मोदी जी का विजय पताका अब मंगल पर ही लहरेगा ।।
डा ० जी ० भक्त