काव्य कुंज
डा ० जी ० भक्त
इन बाल कविताओं में ,
जो मुखर हो रहे बालक ।
जो बन रहे भारत माँ के ,
यान के संचालक ।।
क्या हम भी बनेंगे कभी ,
उनके हितों के धालक ।
जैसा झेल रहे विप्लव ,
आज यूक्रेन जाकर ।।
मेरा देश है भारत ,
हम न रखते मानव से नफरत ।
हम न चाहेंगे कभी , ऐसा ,
न होने देंगे कभी भरसक ।।
यह कविता नही देश की ,
आत्मा बोलती हैं ।
ऐसा इतिहास नही ,
हमारी संस्कृति कहती है ।।
यहाँ की मिट्टी है गंगा की ,
भूमि भरत की है , न भूलों ।
यह धन्यवाद धारण करो ,
देश के बच्चों जगो ।।