गंगास्थान
डा० जी० भक्त
गंगा की महिमा अपार है।
शिव की जटा से निकली धार है।।
विष्णु के पद का प्रपात है।
मुनि भगीरथ तप प्रसाद है।।
दर्शन मज्जन पान जगत को।
पावन करता जल हम सब को ।।
इसकी गाथा सब कोई गाते।
जीवन को नित श्रेय दिलाते ।।
सूर्य चन्द और धरती माता।
जीवन में सुख साधन दाता ।।
नदियाँ सागर निर्झर इसके।
पावन पक्ष निर्भर है जब से ।।
जल जीवन वन व्याप्त जीव में।
पोषण सिंचन जीवन जग में ।।
गंगा जैसी अंगणित धारा।
शीतल करती है जग सारा ।।
गोदावरी गोमती गंडक ।
हरती रहती सबके संकट ।।
पलित पावनी सब कहलाती।
गंगा से जब सब मिल जाती ।।
गंगा सागर का संगम फिर ।
अमृत रही उड़ेल उसमें गिर।।
जलधि – उदधि पयोधि वन नित।
नील गगन धन हरित भवन हित ।।
प्रेम वियूष प्लाणित हो पाता ।
सृष्टि पाटिणका गंगा माता ।।
कार्तिक भास पूनम अभियान।
सुखद समागम पुण्य स्थान ।।