पर्वों की श्रृंखला, किन्तु धार्मिक एकता
(भारतीय परम्परा में वैश्विक)
डा० जी० भक्त
-: मर्यादा :-
हम भारतवासी, कितने है विश्वासी।
है दुनियाँ मानती इसको, प्रमाण अवध और काशी।।
है देश बड़ा विचित्र विविधता इसमें मिलती।
पर्वत नदियाँ और मिट्टी, जाति भाषा में दिखती ।।
है अन्न विविध फल सब्जी, बन बाग मशाले औषध ।
कर भ्रमण हिन्द में पाओं कितने बिखडे है वैभव ।।
जहाँ वेद शास्त्र विज्ञान, कवि जितने हुए महान।
साहित्य पुरातन कहता कितने सन्त और विद्वान ।।
जिससे भारत का गौरव पहचान आज है जग में।
यहाँ के तीर्थ और जो मंदिर है यदा लुभाते मन में।।
गंगा यमुना का पानी, कहता है सदा कहानी।
जो कभी नही भुल पाती दुनियाँ गाती इसे जमानी ।।
दुनियाँ की तरसी आँखें आक्रामक बनकर लूटा।
खोया तो किश्मत जागा अब शैलानी आकर जूटा।।
जय हिन्द ! तुम्हारी भूमि, चर्चित है सबने तभी।
राम, कृष्णा, काली, दर्गा की धरती की है खूबी ।।
इनकी यादें जो अमर बनी पर्वोत्सव बनकर उभरी।
सबकी महती गरिमा ने, मानव की आँखे खोली ।।
है, वैश्विक बने हमारे, त्योहार विदेशों में मनते।
इसमें सच्चाई इतनी, हर देश में भी है सजते ।।
कल्याण और वरदान-ध्यान और आस्था का केन्द्र बना है।
है सत्य अहिंसा अमर जहाँ उससे विश्वास जमा है।।
यह भारत का सन्देश, महावीर बुद्ध के उपदेश।
मीरा कबीर, टैगोर, अरविन्द का यही पावन देश।।
पर्वों की गरिमा ज्ञान में, देखो चरित्र निर्माण में।
है सुगम रोग निदान में, वरदान में सम्मान में।।
सादगी, शुचिता, अमरता, साधना का श्रेय इसमें।
कर धैर्य, संयम, स्वस्थ चिन्तन, ध्यान पवित्र विधान में ।।
माता, धरती, वनस्पति, औषधि, पर्वत और सरिता।
गौ, गुरु, ज्ञानी, अतिथि, पूजा सदा जरुरी ।।
थोड़ा समय लगाओं उसमें चाहे हो जितनी मजबूरी।
छठ, दिवाली, होली, रामनौमी, जन्माष्टमी, अन्नत चतुर्दर्शी ।।
जितने सारे व्रत होते है हार्दिक पूजन उन्हे समर्पित।