सृष्टि का श्रेय जनतंत्र का ध्येय

कमल काठ कागज ले हाथ।
करूँ नमन चरणों में माथ ।।
गुरु पितु मातु देव भगवान।
जिनकी सेवा कर जग जान।।

ज्ञान भक्ति सेवा का दान।
चरण शरण दिन रात समान ।।
सद्संगति उपदेश उपासना।
जन जीवन कल्याण बरतना ।।

सत्य शील सम्मान सुचिन्तन।
मानस मुकुर ध्यान अभिवन्दन ।।
देह प्राण इन्द्रिय दश साधन।
काल कर्म स्वभाव गुण पावन ।।

इतने श्रेय सृष्टि के सुन्दर।
धन्य गण्य गुणवान पुरन्दर।।
गायन श्रवण ध्यान आवश्यक ।
दृढ़ निश्चय निर्णय पर निर्भर ।।

पंच तत्त्व से बना शरीर।
छिति जल पावक गगन समीर ।।
पाप पुण्य का खेल रचाया।
जीव जगत सचराचर माया ।।

ब्राह्मी सृष्टि की यह काया।
नाशवान हमने स्वीकारा ।।
भोग रोग कष्ट और मृत्यु।
मानव ही मानव का शत्रु ।।

ज्ञान पुंज विकास की कुंजी।
अज्ञानांध प्रकृति ही गंदी ।।
शुद्ध बुद्ध मन ईश परायण।
विश्व मानता उसे नारायण ।।

सत्य अहिंसा प्रेम से फलता,
जीवन का उद्यान जगत में।
दुर्गुण पाकर उपवन जलता,
रोग शोक परिताप पाप से।।

ज्ञान धर्म उपकार मार्ग बन,
दुनियाँ जैसा स्वर्ग सजाया।
वही बुराई द्रोह दर्द बन,
भूषण से दूषण भर पाया।।

जन-जन, जन-गण, जन-मन, जन-धन,
बनकर ईंधन धधक रहा है।
महाशक्ति की उर्जा जब नित
युद्ध आर अवसाद बना है।।

सूर्य सिमटता, चांद सिसकता,
प्रदूषण की होड़ लगी है।
शोषण उत्पीड़न और दोहन,
आतंक बना लहराता जग में।।

न्याय और अपराध टिका है,
आह कराह से ग्रस्त कोर्ट में।
लेकिन भारत लगा हुआ है,
अपने आदर्शों के हित में।।

नेहरु जी से लेकर अबतक,
राहुल जी की दृष्टि न नीचे।
सबने श्रेय का सम्बल पाया,
आज मानवता पड़ती पीछे ?

देखना है तो आज देखिए-
लोक सभा में कैसा दंगल ?
भूल नही सकते हम अपना
गौरव कभी न छूटने देंगे।

पहले आते थे जो सांसद,
होते थे वे बिखड़े दल में।
आज समूचा भारत सांसद,
पक्ष विपक्ष में कैसा जमते ?

डा० जी० भक्त

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