सावन, मानव प्रौर पावस

डा० जी० भक्त

सावन का है मास सुहावन ।
हरा भरा कितना मन भावन ।।
सजा-धजा प्रकृति का आंगन ।
बाग-बगीचा वन और उपवन।।
पावस आया बादल लाया।
धरती को जल से नहलाया ।।
खेतों में चल पड़ा किसान।
हरित खेत और दढ़ अरमान।।
नदियों में पानी भर आया।
नाविक उसम नाव चलाया।।
बच्चे खुश विद्यालय जाते।
वर्षा का आनंद उठाते ।।
इन्द्र धनुष है आसमान में।
लड़के दौड़ चले बगान में ।।
खूब रसीले जामुन आम ।
खुश हो खाते लोग तमाम ।।
आज दिन भर बादल बरसा।
ओला पड़ा, जोड़ से गरजा ।।
बिजली चमकी बादल तड़का।
बच्चों का दिल डर से भरका ।।
कितना अच्छा सावन मास ।
घर-घर में छाया उल्लास।।
देखो कितना साफ आकाश।
हास भरा सावन का मास।।
गृष्म ऋतु की गरमी गयी।
नयी जान सब में भर गयी ।।
धान रापते ह मजदूर।
जीवन दाता सावन मास ।।
दिल में भर खुशियों भरपूर ।।
पावस का मौसम है सुन्दर ।
आशा लाता दिल के अन्दर ।।
अखिल विश्व को है विश्वास।
छः ऋतुएँ भारत के पास।
जिसके होते बारह मास ।।
कृषि कार्य निर्भर है इस पर ।
भूख मिटाता यही वर्ष भर ।।
खेती निर्भर या हो दुस्तर ।
सबका भार इसी के ऊपर ।।
चार महीना कृषि मास है ।
मानसून इसका ही नाम है।।
वर्षा की होती है पूजा।
इसका पूरक कोई न दूजा ।।
ऐसा ही हो मानव जीवन ।
जैसा प्लीजेन्ट रेनी सीजन ।।

By admin

3 thoughts on “सावन, मानव प्रौर पावस”
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