भारतीय संस्कृति में होली का परिदृश्य

डा० जी० भक्त

भारतीय धार्मिक त्योहारों में, देख भैया
सतयुग में होलिका दहन का इतिहास है
तब से प्रचलित पर्व घर-घर में,
छाया हर्ष, बाल वृद्ध युवक वृन्द सबमें उल्लास है ।।
उत्सव में होली, रंगी रंगीली
युवाओं की टोली भाव मीनी रसीली है।
वासन्ती बयार चली, बागों में कलि खिली,
खान-पान, रंग ढंग मस्ती से फूली है ।।
खेत खलिहानों में, हाटों बाजारों में
मौज और मस्ती के साज सभी सजे हैं।
विकास के होहल्ला में गरीबों का अश्रुगैस
मिलाबट पदूषण के छौंक जहां पड़े हैं ।।
ज्ञान विज्ञान नहीं, योग वैराग्य नहीं,
लेकिन त्योहार में व्यवहार जो सदा से चला।
भाषा का वैभव और विश्वास का आभास कहाँ,
सच्चा त्योहार पर तलवार जो लटक रहा ।।
गीत संगीत का पुनीत पर्व होली है,
मंदी पसन्दी पर तीखी वार करती है।
उत्तम विचार में राजनीति का दावा कितना,
सार्थक निरर्थक का नित्य खोज करती है।
शिक्षा संस्कृति मानवता है ढोंग मात्र,
दिशा विहीन जो समाज आज दिखता है।
आडंबर का बवंडर आज उत्सव के सिर चढ
होली का गर्दिश अपराधों को थामते हैं ।।
आज हिन्द हिन्दी और हिन्दू से चर्चित
उपभोक्ता विरासत के नाम वैष्णव भी वैश्विक है।
कहाँ तक गिनाए आज जो कुछ है उल्टा,
विवादों का बोझ ढोती चिन्तित है सभ्यता ।।
राधा कन्हैया की होली मनी मथुरा में,
मोदी और योगी जी का केन्द्र आज यू०पी० हैं ।
देश है स्वतंत्र निरपेक्ष धर्म दर्शन में,
मोटे अनाजों के आज पूए पकते है ।।
जाऊँ जाऊँ मैयारे बटोही दिल्ली देखिआउँ,
आम आदमी पार्टी की जनमत सरक्षित है।

By admin

20 thoughts on “भारतीय संस्कृति में होली का परिदृश्य”
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