आर्त नाद
डा० जी० भक्त
नहीं कथानक, व्यंगवाण
यह है कलियुग का ।
देता है युग बोध हमें,
युगधर्म आज का
इसे अन्यथा लेना नहीं,
समझना दिल से ।
आजादी जो ली हमने,
सत्य अहिंसा और नम्रता,
दुहराना फिर से।।
हाथ में गीता ।।
बापू ने ललकारा नहीं,
प्रेम से सींचा।
लेकर भारत से दुनियाँ,
को सदा जगाया।
आज जरुरत पड़ी हमें,
जो मुझे बुझाया ।।
क्षमा करेंगे आहत मन की,
यह मजबूरी ।
आह भरी आवाज,
घटाये दिल की दूरी।।
जनतंत्र के प्रति सप्रेमाग्रह काव्य रचनाकार दिनांक 02 अक्टूबर 2022
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