लड़का-लड़की भी दोस्त हो सकते हैं

दिव्यांशु आनंद (जहानाबाद, बिहार)

सालों से जानता था मैं उसे ।
अजी!
अच्छी दोस्त थी वो मेरी ।।

अच्छी दोस्त होने का ,हर फ़र्ज़ वो निभाती थी।
सही क्या है , है क्या गलत
हमेशा वो मुझे समझाती थी।।

दोस्ती के खातिर वो किसी से भी लड़ जाती थी ।
वो मेरी भलाई कि खातिर,
मुझसे भी, जिद पर अड़ जाती थी ।।

पर एक दिन…..हमारी दोस्ती को
इस समाज ने एक अलग रूप में ले लिया ।
और एक पवित्र दोस्ती को एक अलग नाम दे दिया ।।

इस गंदी सोच ने आज दोस्ती को बदनाम कर दिया ।
समाज की इसी सोच ने
आज एक सच्ची दोस्ती को सरेआम नीलाम कर दिया ।।

जो आज तक कभी रोई न थी
उसे समाज के झूठे कलंक ने रुला दिया ।।
समाज की गंदी सोच के कारण ,

आज मैंने एक सबसे अच्छा दोस्त गंवा दिया ।।
समाज के आगे बेबस ,उसने मुझसे नाता तोड़ लिया।
मजबूर होकर उसने भी खामोशी से नाता जोड़ लिया।।

समाज की इस नीच सोच ने आज मुझे भी रुला दिया ।
अच्छाई बची है इस समाज में ,
इस विश्वास का भी आज अंत करवा दिया।।

समाज का तो यही काम है ।
अच्छा लगे तो सुबह, वरना शाम है ।।
पूछता हूँ….

क्या लड़का-लड़की महज़ एक अच्छे दोस्त नही हो सकते ???
क्या लड़का-लड़की एक-दूसरे के दुख में नही रो सकते ???
नही मेरे दोस्त ………,

लड़का-लड़की भी एक अच्छे दोस्त हो सकते है।
एक दूसरे के सुख-दुख में हँस और रो सकते हैं ।।
समाज का क्या है…

समाज कुछ भी कहे, हमें चुपचाप सहना पड़ता है।
समाज सही हो या गलत
फिर भी हमें इस समाज की जंजीर में बंध कर रहना पड़ता है ।

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