कविता के कचरे
डॉ० जी० भक्त
हम भारत वासी हैं।
हमारी विश्व में ख्याति है ।।
जिसे दुनिया उत्सवों पर गाति है ।।
हमारी धार्मिक संस्कृति है।
प्रभुत आध्यात्मिक शक्ति है।।
पर्वो पर सजावट सुहानी लगती है।
हमें आज भी याद आती है।
अपार आस्था और भक्ति है।
आज चार दिनों से चलता पर्व,
रवि खष्टिका का महत्त्वपूर्ण व्योहार।
चला आ रहा युगो से,
सात्विकता पूर्ण सुमंगलमय व्यवहार ।।
चाटों पर प्रशासनिक देखभाल
बाजारों में व्यवसायी कमाकर निकाल।
नौकरी वालों में चहल पहल मिला भगवान,
परन्तु शिक्षक रहे बेहाल ।।
दुनियाँ की सरकारों की भली सोच,
जनसंख्या विस्तार पर लगी रोक।
अब समझा, इसी लिए वेरोजगरी
पर भी जोर शोर ।।
सुनो जरा, घबड़ाओ मत
यह सब चलता रहेगा।
यह अव्याहत विकास का प्रवाह है,
जो लहराता रहेगा ।।
अशिक्षा और शराब वन्दी पर
लम्बी खड़ी श्रृंखला देखा न।
कोरोना से लड़कर,
विश्व की स्वास्थ्य सतर्कता को ।
सबों की चाह है
हम सत्ता में साझेदार बने।
और न कुछ तो
आजीवन पेंसनके दावेदार रहे।।
जय जनतंत्र जननी,
सत्ता संवरनी, गठबंधन करनी,
वोटर मन रंजनि कष्ट निकंदनी,
नित उद्घाटन करनी।। नम० ।।
छोड़ युद्ध का ख्याल
भाई सम्वाद पर आओ।
आतंक का रास्ता छोड़
मानवता को अपनाओ ।।