विघटन कारी शक्तियाँ और सहिंसा
डा. जी. भक्त
आतंक वाद से डरो मत ,
अहिंसा का व्रत अपनाओ ।
क्रोध , लोभ अपमान भूलकर
सतत प्रेम का क्षेत्र बढ़ाओ ।।
जीना है तो त्याग जताओ ,
छीनों नहीं दान दर्शाओं ।
पेड़ लगाओ सींचो सब दिन ,
छाया दुनियाँ को पहुँचाओ ।। 1 ।।
गाओ गीत तू सदाचार का,
पालन करना धर्म सदा तुम।
शिक्षित बन अनुशासित रहना,
मानवता पर मर मिटना तुम ।।
मरना पड़े भूख से तुमको ,
तरसो मत धन देख पराया ।
संतुष्टि का भाव हमेशा,
सेवा का सकल्प करो तुम।। 2 ।।
विश्व तुम्हारा अपना घर हो ,
ऐसा भाव सदा तुम रखना ।
सबको हित पहुँचाकर अपने
मन में शान्ति का रस चखना ।।
जो अपराधी व्यभिचारी हो ,
दान दया का पात्र समझना ।
उसके हित के लिए परस्पर,
भाव प्रेम का पाला करना ।। 3 ।।
घृणा द्वेष संघर्ष सदा ही,
उसे जगाता , तझे जलाता ।
घन , बल अवसर की बर्बादी ,
चिन्ता से है नींद न आती ।।
दम्भ द्रोह दुनियाँ का भक्षक,
मानवता पर बज्र कहर है ।
रोग शोक संतप्र जीवन पर,
अहिंसा का वरदान अमर हैं ।। 4 ।।
रसिया , अमरीका चाइना या इंडिया ,
फ्रांस ब्रिटेन हो अथवा अरबिया ।
सभी है भाई – भाई मिलना है साथ
जैसे प्रेम की हो , हरी भरी बगिया ।।
उज्ज्वल भविष्य हेतु देश के प्रोगेस हेतु
शान्ति भाईचारा का ऐसा हो आइडिया ।
लिवर्टी प्रोसपेरिटीका मार्ग हो प्रशस्त सदा,
ग्लोबलाइजेशन ऑफलव इज आवर क्राइटेरिया है।। 5 ।।