रक्षाबन्धन

डा. जी. भक्त (वैशाली, बिहार)

आया राखी का त्योहार ।
खूब सजा है शहर बाजार ।।
निखर रहा बहनों का प्यार ।
घर- घर में फैला मनुहार ।।
इसे बनाओं मत व्यापार ।
पर्व स्नेह सरिता की धारा ।।
धागे का यह है उपहार ।
आपस का निर्मल व्यवहार ।।
जीवन भर करना उपकार ।
नहीं भूलना यह आचार ।।
व्रत नहीं , वर्ताव हमारा ।
प्यार भरा आचार हमारा ।।
रक्षा का सरोकार हमारा ।
दीनता जो बने सहारा ।।
जुड़े भाईचारा का तार ।
कभी न टूटे बने साकार ।।
ब्रत है भाव , नही आडम्बर ।
श्रद्धा और विश्वास पर निर्मर ।।
दानोपहार है मात्र दिखावा ।
मत करना विश्वास दुबारा ।।
मानस शुद्ध बनाकर मिलना ।
अपने प्रण से कभी न हिलना ।।
लेना देना अर्थ न रखता ।
परोपकार से प्रम निखरता ।।
 
काव्य कुंज कलिका ( कविता संग्रह ) / Kavya Kunj Kalika (Poetry Collection)

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