नारी

कभी तू अशिक्षिता निरस्मिता अबला थी ।
पराजिता परिमिता कभी असूर्यमपथ्या थी ।।

आज तेरी आभा चतुर्दिक विखर रही ।
उत्साह की अविरल प्रयासे उभर रही ।।

विकास के बादल की घटा उमर रही ।
नूपुर की ध्वनियों में वीणा – सी गुंज रही ।।

आज तू विद्यालयों में झड़ बांध जा रही ।
आधी आबादी जागृति का गीत गा रही ।।

तू स्वतंत्र छा रही सफलताओ के शिखर पर ।
दिल में पुरूषार्थ भरकर मन में अरमान लेकर ।।

पंचायतों प्रखण्डों के हर क्षेत्र में अब तेरी पहुँच ।
नौकरियों चुनावों में खेलों में उतरे बहुत ।।

झण्डें लहराती , प्रेरणा प्रसाद पा रही ।
माँ भारती के आंगन प्रांगन में स्थान पा रही ।।

धरती आकाश और सागर में भी जगह तुझे ।
और तेरी भूमिका से स्वर्णिम विहान है ।।

कभी तेरी उपेक्षा होती थी आज तो अपेक्षा है ।
ज्योति पर आज तू अकेली नहीं शमा है ।।

बढ़कर तो देखों लाखों में तेरी सहेलियाँ खड़ी है ।
तेरी आभा , तेरी प्रभा राजमार्गों पर जमो है ।।

अब तू जूगनू नही , प्रभा पुंज हो ।
विकाश के इस युग में तू ही कला कुंज हो ।।

तू माता पिता की आन हो राष्ट्र की सम्मान हो ।
उभरते समाज में तू ही मधुर जयगान हो ।।

डरो मत बढ़ा , साहस में रंग धोलो ।
अविद्या के अन्धकार को मिटाओ ।।

प्रेरणा के पथ पर अग्रसर हो जाओ ।
सफलता के शिखर पर झण्डे लहराओ ।।

By admin

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