जागो हे जगत पति जगदीश
डा० जी० भक्त
जग के पालक जन प्रति पालक ।
हे परमेश्वर जन सुख दायक ।।
कण – कण में जो सदा व्यापता ।
तू ही दया निधि नदीश ।। जोगो ० ।।
प्रतिपल तेरी गाथा गाऊँ ।
प्रेम पलक भर तुझे बिठाऊँ ।।
पल – पल , घट – घट तुझे विलोकूँ ।
पावन तारण हे रजनीश ।।
माया का सुखद- दुखद संसार ।
वृत्तियों का व्यवहार अपार ।।
ज्ञान की गरिमा रही अक्षुण्ण ।
भूले भक्ति के विभव महीश ।।
चेतना से प्रेरणा को जोड़ डालो ।
चिन्तनों को प्रेम का आयाम दे दो ।।
सद्गुणों की गंध फैलाओ जगत में ।
पूर्ण हो सद्भाव जीवन में यतन में ।।
भूलकर भ्रम भेद मूलों के भँवर में ,
गीत गाओ सफल जीवन युक्ति से भर ।
भक्ति का भंडार लेकर प्रेम पथ पर ,
मुक्ति का प्रणिधान ज्ञान संधान दृढ़तर ।।
पवन के डोर पकड़े प्रेम पथ पर ।
धन – घटा के पार उज्जवल रश्मि से मिल ।
तेज से तम को भगाओ आज हिलमिल ,
तू प्रभंजन बन दुखों का भार रह लो ।
आज तेरे साथ हम सब भी रहेंगे ।
साधनों में शुचिता का रंग भर दो ।।
सत्य संधान होगा ही तुम्हारा ।
कल्याणकारी व्रत तुम्हारा ही सहारा ।।
मैं बनूंगा सारथी तू साथ देना ।
जगत होगा साथ तो तुम हाथ देना ।।
क्या करु अभिव्यंजना तुम जानते हो ।
आगम निगम अव्यक्त अगम अपार हो तुम ।।
तू अचल अविचल शांत निर्मल और उज्जवल ।
हम अकिंचन किकरों पर कब करोगे ?
प्रेम से पद रज कणों का दान देकर ।
मूढ़ता को ज्ञान का वरदान देकर ।।
आज है अभ्यर्थना जग को बचा लो ।
कींच कर्दम को मिटा निर्मल बना दो ।।
भीरता को दृढ़ता से पूर्ण कर दो ।
सहिष्णुता से दीनता को दूर कर दो ।।
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