अब आया है पर्वों का दौड़

 भाग ‘ क ‘

 गया कुआँर फिर कार्तिक आया ।

 पर्वों का एक दौड़ है लाया ।।

 इसी देश में देखा हमने ।

 उत्सव होता है घर घर में ।।

 तरह – तरह के पर्व हमारे ।

 लोग मनाते जितने सारे ।।

 सब की जाति और धर्म में ।

 अंतर दिखता सदा कर्म में ।।

 किंतु इतना सत्य समझना ।

 हमने देखा जाना जितना ।।

 सभी मनाते है हिल मिलकर ।

 भेद – भाव को गाँठ भूल कर ।।

 देश की एकता की पहचान ।

 उत्सव की संस्कृति महान ।।

 एक – दो नहीं इसकी गिनती ।

 सोचो नीत दिन इसकी चलती ।।

 सात दिनों का है सप्ताह ।

 हर दिन पर्व नहीं परवाह ।।

 त्योहारों की सरिता बहती ।

 भारत की संस्कृति है कहती ।।

 डॉ.जी.भक्ता

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