अब आया है पर्वों का दौड़

 भाग ‘ ख ‘

 आश्विन पितृ पक्ष का हल्ला।

 पितरों को है शांति दिलाता ।।

 इसी बीच जीवित पुत्री का ।

 जीवन पोषण निज संतान का ।।

 दीर्घायु का कर आह्वान ।

 कितना सुंदर भाव महान ।।

 दो अक्टूबर इसमें आता ।

 जन मन में उल्लास जताता ।।

 गांधी लाल बहादुर जन्में ।

 देशभक्ति थी उनके मन में ।।

 दश दिनों का ले संकल्प ।

 विजयादशमी का यह पर्व ।।

 इसी बीच में कर्मा धर्मा ।

 लेकर उतरा नूतन उर्जा ।।

 पूर्णिमा के दिन शरद चांदनी ।

 साहित्य साधकों की मंदाकिनी ।।

 कविता का रस पान गान का ।

 पूर्ण चंद्रिका आमिय दान का।।

 अब आते हम शुभतम मास ।

 जिसमें व्रतों की बरसात ।।

 धनतेरस को जमा बाजार ।

 खरीद बिकरी का कारोबार ।।

 और चतुर्दशी की काली रात लोग पूजते हैं यमराज ।।

 दीपावली दीप मलिका दीपोत्सव दिवाली ।

 कार्तिक की अमावस्या को घर – घर है उजियारी ।।

 धूम -धाम उल्लास भरा यह पर्व विजय का द्योतक ।

 कहते हम सब सत्य मानना है संस्कृति का पोषक ।।

 चंद्रगुप्त गोवर्धन पूजा भाई दूज की बेला ।

 अन्नॅकट बजरी नारियल भोगे बना अलबेला ।।

 चार दिन तक चहल – पहल से छठ व्रत अपनाते ।

 इसकी गरिमा गा – गाकर आनंद के दर्शन पाते ।।

 फिर एकादशी आती तो देवोत्थान मनाते ।

 विष्णु देव को क्षीर सागर से हम सब उन्हें जगाते ।।

 पूर्णिमांत को मोक्ष दायिनी भागीरथी के तट पर ।

 दर्शन मज्जन पान दान का लाभ हृदय में पाकर ।।

 सुख संतान धन मान ज्ञान फिर मोक्ष हमारा लक्ष्य ।

 इन व्रत साधन को अपनाना बना हमारा साध्य ।।

 

 डॉ.जी.भक्ता

10 thoughts on “अब आया है पर्वों का दौड़”
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