मातृ देवी दुर्गा नमस्तुते
भारत की प्रथा है धार्मिक अनुष्ठान की ।
यहाँ पर मान्यता हम देते है भगवान की ।।
इसकी महिमा निहित है आध्यात्म में।
हम आस्था रखते है पर्वों त्योहारों में ।।
धर्म कर्म और पूजन हमारा कर्तव्य है ।
ये सारे विषय हमारे व्यवहारों से जुड़े हैं ।।
आज हम अरब से उपर की जन शक्ति रखते हैं ।
सभी अपने – अपने धर्म के प्रतीक बने हैं ।।
मिला – जुलाकर हमारी संस्कृति ही धर्म है ।
व्याप्त – व्यापी प्रकृति का स्वरूप धर्म का मर्म है ।।
यही हमारी धरती मातृता निभाती है ।
हमें गोद में वह सदा सुलाती है ।।
इसके अन्नत रूप और प्रतिरूप बिखरे हैं ।
उनकी ही महिमा हमारी आस्था में नव चेतना भरती है ।।
मातृ देवी दुर्गा नौ रूप में शक्ति की विधातृ है ।
भावना के पूष्प हमारी अर्चना में समर्पित है ।।
सर्व भूत हित रता हि माता नित्य प्रतिष्ठिते ।
यथा सर्व भावेन मातृ देवी दुर्गा नमस्तुते ।।