देश हमारा -1
कितना प्यारा देश हमारा ,
जन – जन की आँखों का तारा ।
बहती जिसमें अगनित धारा
देख तरसता नित जग सारा ।।
गंगा यमुना जिसकी बेटी ,
सोना – चाँदी जिसकी खेती ।
रवि – शशि किरणें जिसे सजाती ,
हरित खेत की सेज बिछाती ।।
टाटा और भिलाई जिसकी ,
गरिमा गाती झड़िया सिन्द्री ।
कानपुर के कल कारखाने ,
पैदा करते माल खजाने ।।
बम्बई और मद्रास शहर है ,
दिल्ली कलकत्ता सुन्दर हैं ।
जहाँ जिन्दगी जा सुख पाती ,
मेट्रोपोलिटन कहलाती ।।
हरिद्वार पटना की शोभा ,
मथुरा , काशी और महोबा ।
झाँसी , नागपुर वो चितरंजन ,
लगते हैं कितने मनभावन ।।
हिम पर्वत का शिखर समुज्ज्वल ,
लोल लहर सागर का छलछल ।
हिमगिरि वैशाली की यात्रा ,
कितना सुखद हमें मन भाता ।।
नील गगन की सैर कराने ,
एयर इंडिया भरी उड़ाने ।
बुद्ध और गाँधी का भारत ,
अभय दिलाता सबको गाकर ।।
वृन्दावन की शोभा न्यारी ,
काश्मीर की घटा निराली ।
प्रजातंत्र की पावन धरती ,
हाय ! न्याय के लिए तरसती ।।
नेहरु और राजेन्द्र जहाँ के ,
बाबा साहब , जैन वहाँ के ।
गीत प्रेम का , पंचशील का ,
ज्ञान , धर्म , विज्ञान बताते ।।
ओ शतकोटि मानव सपूत ,
तू सफल क्रान्ति के अग्रदूत ।
तूं पोंछ जननी का अंगधूल ,
शोषण , उत्पीड़न , भय समूल ।।
तू बोलो भारत है महान ,
हम भारतवासी है समान ।
जन हित के लिए लुटाये हम ,
यह तन , यह मन , जीवन धन प्राण ।।