सिद्धि समृद्धि
बच्चों सुन लो यह उपदेश ,
इसको रखना सदा सहेज ।
चलना इसी मार्ग पर सब दिन ,
दुर्गुण से रखना परहेज ।।
धरती , माता और समाज ,
इसको रखना नितदिन याद ।
इनका सकल सृष्टि है ऋणी ,
इस पर करना नही विवाद ।।
पिता , गुरु , पालक , अभिभावक ,
ये सब तेरे मित्र महान ।
ये हैं पूज्य देव धरती के ,
इनको देना है सम्मान ।।
सदाचार , व्यवहार शील से ,
जीत जगत को बढ़ते जाओ ।
परिश्रमी इमानदार बन ,
सेवा का व्रत ही अपनाओ ।।
भेद – भाव , विरोध घृणा सब ,
बाधक बनते है जीवन में ।
इससे बल घटता समाज का ,
पतन फलित होता है जग में ।।
है सद्भाव सुखों का दाता ,
सृजन कारी है मार्ग राष्ट्र का ।
पूजनीय वह पुरुष जगत में ,
जो जग को सन्मार्ग बताता ।।
अर्जन करो ज्ञान से गौरव,
फैलाओ दुनियाँ में सौरभ ।
शान्ति समृद्धि और प्रगतिका ,
जनहितकारी देकर वैभव ।।
साधन सदा शुद्ध अपनाना ,
अर्जन में हो त्याग सर्मपण ।
देश प्रेम का लक्ष्य तुम्हरा ,
स्वार्थ भाव का करो विसर्जन ।।
स्वस्थ बनो आहार शुद्ध लो ,
सदा नियम पूर्वक पथ तेरा ।
प्रेम भरा व्यवहार तुम्हारा ,
नित लायेगा सुखद सबेरा ।।
दीन – दुखी , लाचार , शत्रु भी ,
सदा दया के पात्र तुम्हारे ।
उन्हें देखना कष्ट न देना ,
चाहे जग तुझको ललकारे ।।
ऐसा ही हो कर्म तुम्हारा ,
धर्म यही , वन – तीर्थ यही है ।
जीवन पथ पाथेय बने ,
तुझसे कृतार्थ यह मातृभूमि हो ।।
यही सिद्धि , समृद्धि यही है ,
यही पुण्य फल , यश है लौकिक ।
है सन्तुष्टि मुक्ति दायक ,
सुन यही दिव्य प्रकाश अलौकिक ।।