वन जीवन
एक दिन गाँव का चूहा निकला अपने बिल से ।
जाकर बोला भालू काका ! कहता हूँ मैं दिल से ।।
बड़ा जुर्म है हम जीवों पर जीना अब मुश्किल है ।
हर चिजों में जहर मिला है , खाना नामुमकिन है ।।
बोला भालू – ठीक बात है , मेरा भी तो यही हाल है ।
हूँ खेल दिखाता दिनभर मालिक मेरा मालोमाल है ।।
आकर बोला बन्दर भाई ! सुन लो मेरी कहानी ।
दाँत दिखाता फिरूँ गाँव भर , कितनी है हैरानी ।।
बिल्ली बोली बड़ा कठिन है दूध दही का जग में ।
कुत्ते को भी दूध भात की दिक्कत रहती घर में ।।
सब ने किया विचार एक दिन चलकर बिल्ली भाई ।
डालूँ धरना सभा भवन पर , कैसी सत्ता आई ।।
न्याय और अधिकार हमारा जब तक नहीं मिलेगा ।
जंगल के जीवों का भी अब वोटर लिस्ट बनेगा ।।
शाकाहारी , मांसाहारी , दो दल मेरे होंगे ।
चिड़ियों और मछलियों को भी राजनीति में लेंगे ।।
घोंघे , केकड़े और फतिंगे होंगे आदिवासी ।
मानव के चंगुल से हमको लेनी है आजादी ।।
चमड़ा , अन्न , दूध और चर्बी , मधु , मोम और हड्डी ।
मांस और अंडे का शोषण करके लेते गद्दी ।।
जाती धर्म भाषा का झगड़ा , कभी न होगा भाई ।
एक अखण्ड राज्य जंगल का इसकी ठनी लड़ाई ।।