तितली
दीन हूँ मैं , गमगीन नहीं हूँ
फूलों का शौकीन रही हूँ ।।
चंचल और हसीन भली हूँ ।
नाजुक वो कमसीन सही हूँ ।
वसती हूँ मैं बागों में ।
टिकती हूँ मैं काँटों में ।।
लिपटी हूँ सदा परागों में ।
सुन्दर लगती हूँ दागों में ।।
मुस्काती हूँ , शरमाती हूँ ।
इतराती हूँ , इठलाती हूँ ।
बलखाती हूँ , उड़ जाती हूँ ।
सहलाती हूँ , फुसलाती हूँ ।
मधु पीकर मैं मतवाली हूँ ।
काटों में शोभाशाली हूँ ।
मैं दो – दो पंखों वाली हूँ ।
मैं खुब बजाती ताली हूँ ।
उपवन की मैं रानी हूँ ।
सबकी जानी पहचानी हूँ ।
मैं हर फूलों की वाणी हूँ ।
मैं रुप भरी मस्तानी हूँ ।
भँवरों का गीत पसंद मुझे ।
मीठा लगता मकरंद मुझे ।
बहलाता वायु मंद मुझे ।
नहलाता शीतल चन्द्र मुझे ।
छूओ नहीं , उड़ा दो तुम ।
मारो नहीं , भगा दो तुम ।
पूछो नहीं , सुना दो तुम ।
नाम मेरा बतला दो तुम ।
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